मानसिक रोग और आयुर्वेद



 नमस्ते दोस्तों! 👋

आज हम बात करते हैं मनोवैज्ञानिक रोंगो के बारे में, वो भी अपने प्रिय आयुर्वेद के दृष्टिकोण से। भागदौड़ से भरी जिंदगी में मन का बीमार होना भी आम बात हो गई है ना? आयुर्वेद में इसके कारण क्या हो सकते हैं, लक्षण क्या हो सकते हैं और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है। बिलकुल आसान भाषा में समझेंगे।

मानसिक रोग और आयुर्वेद

आयुर्वेदिक सिद्धांत है कि हमारे शरीर और मन का गहरा संबंध होता है। अगर शरीर में कोई विकार है, तो उसका असर मन पर भी पड़ता है और अगर मन परेशान है, तो शरीर भी बीमार हो सकता है।  हमारे मन की शांति और सेहत के लिए तीन प्रमुख तत्व जिम्मेदार हैं:

 * सत्व: यह मन का शांत, शुद्ध और सकारात्मक भाग है।

 *रजस: यह मन की चंचलता, वैराग्य और ज्वालामुखी से है।

 * तमस: यह मन के अलस्य, अंधकार और नकारात्मकता को दर्शाता है।

जब इन तीनो का असंतुलन होता है, तो मन बीमार होने लगता है।

मानसिक विकृति के कारण (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण)

आयुर्वेद के अनुसार, मनो रोगों के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

 *दोषों का असंतुलन: हमारे शरीर में तीन मुख्य दोष होते हैं- वात, पित्त और कफ। जब इनमे असंतुलन होता है तो मन भी प्रभावित होता है। जैसे कि वात वृद्धि से चिंता और उदासी हो सकती है, पित्त बढ़ने से क्रोध और चिड़चिड़ापन हो सकता है, और कफ बढ़ने से भावशून्यता और नकारात्मकता हो सकती है।

 *गलत खान पान: अधिक तल-भुना, बासी या गरिष्ठ भोजन , नशा करने से भी मानसिक रोग होता है।

 *लाइफ स्टाइल ठीक नहीं होने पर : देर रात तक जागना, अधिक तनाव लेना और शारीरिक संतुलन की कमी से भी मन बीमार हो सकता है।

 * उच्च रक्तचाप: बहुत अधिक गुस्सा आना, डरना, चिंता करना या दुख में डूब जाना भी मन के संतुलन को बनाए रख सकता है।

 * आनुवंशिक कारण: कुछ मानसिक रोग परिवार में पहले से चले आ रहे हो सकते हैं।

मानसिक रोग के लक्षण (पहचानें कैसे?)

मानसिक रोग के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार के होते हैं:

 *लगातार उदासी या कमज़ोरी महसूस होना

 * बहुत ज्यादा चिंता या डर लगना

 * नींद न आना या अधिक नींद आना

 * भूख में बदलाव (बहुत ज़्यादा या बहुत कम खाना)

 * थकान और ऊर्जा की कमी महसूस होना

 *ध्यान बनाने में परेशानी होना

 *किसी भी चीज़ में मन न लगाना

 *क्रोध, चिड़चिड़ापन या उदासी महसूस होना

 *ख़ुद को नुकसान  वाले  विचार आना

मनोवैज्ञानिक उपचार (आयुर्वेदिक विधि)

 *आहार (आहार): प्रभाव, सुपाच्य और सात्विक

आहार लेना चाहिए। ताज़ा फल, सब्जियाँ, साबूत अनाज और दालें शामिल हैं। 

 * विहार (जीवनशैली):

   *नियमित अवलोकन: समय पर सोना और जगना 

   * योग और प्राणायाम: ये मन को शांत करने और तनाव को कम करने में बहुत मदद करते हैं। जैसे कि अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और ध्यान।

   *मालिश (अभ्यंग): औषधीय तेलों से शरीर की मालिश करने से वात दोष शांति मिलती है और मन को आराम मिलता है।

   *अच्छी नींद: मानसिक स्वास्थ्य के लिए हर दिन 7-8 घंटे की गहरी नींद लेना बहुत जरूरी है।

   *शारीरिक व्यायाम: रोज़ाना कुछ देर व्यायाम या पैदल यात्रा मन को तरोताज़ा है।

 *औषधियां (जड़ी-बूटियां): आयुर्वेद में कई ऐसी स्वास्थ्यवर्धक औषधियां हैं जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी मानी जाती हैं, जैसे:

   * ब्राह्मी: यह दिमाग को तेज़ करती है और याददाश्त बढ़ाती है।

   * अश्वगंधा: यह तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है।

   * जटामांसी : इससे मन शांत होता है और नींद अच्छी आती है।

   *शंखपुष्पी: यह एकाग्रता बढ़ाने और मस्तिष्क को शांति बनाए रखने में सहायक है।

 * पंचकर्म: पंचकर्म से शरीर के विषैले तत्व समाप्त हो जाते हैं और मन शांत हो जाता है।

यह याद रखना बहुत जरूरी है कि मानसिक अवसाद का इलाज किसी  योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही किया जाना चाहिए। वे आपकी प्रकृति  के अनुसार सही उपचार बता सकते हैं।

 आपका मन स्वस्थ, तो आप स्वस्थ! 😊

यदि आपका कोई प्रश्न है, तो बेझिझक प्रश्न कर सकते हैं! 🙏

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आरोग्यम आयुर्वेदिक क्लीनिक
रुद्रपुर, उत्तराखंड

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