★शरद ऋतुचर्या★




◆शरद ऋतु: दो माह: आश्विन एवं कार्तिक

आश्विन: 15 सितंबर -13 अक्टूबर
कार्तिक: 14 अक्टूबर – 12 नवंबर



परिवर्तन ही संसार में शाश्वत है अर्थात यह संसार

परिवर्तनशील है। दिन के बाद रात,रात के बाद दिन,

दुःख के बाद सुख,सुख के बाद दुःख आना ही है उसी

प्रकार ग्रीष्म ऋतू के बाद वर्षा और वर्षा ऋतू के बाद

शरद का आना शाश्वत है। महर्षि चरक,वाग्भट्ट आदि

समस्त ऋषियों ने ऋतू परिवर्तन पर समस्त प्रकृति, दोष

एवं व्यवहार पर गहन अध्ययन करके अपने द्वारा

लिखित महान ग्रन्थों चरक संहिता, अष्टांगहृदय के

सूत्रस्थान में ऋतुचर्या पर पूरा अध्याय लिखकर प्रकृति

सम्मत व्यवहार करके समस्त जगत के स्वास्थ्य की

कामना और नियम बताये हैं।

अगर हम इन्ही नियमों का पालन करें तो ऋतू परिवर्तन

से होने वाली छोटी-छोटी बीमारियां जो पिछले आठ

-दस वर्षों से महामारियां बन गयी हैं उनको हराना बांये


हाथ का खेल है।


किसी वर्ष डेंगू,किसी वर्ष चिकनगुनिया,किसी वर्ष

वायरल,कभी मलेरिया,तो कभी दो-तीन मिली जुली,ऐसे

उपरोक्त नाम वाली बीमारियां शरद ऋतू में देश में

हाहाकार मचाती हैं।



वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। शरद में चंद्रमा का

बल अव्याहत् (पूर्ण) हो जाता है जिससे भूतलगत

पदार्थों में स्नेह व लवणरस की वृद्धि होती है। बल भी

बढ़ता है। औषधियाँ पुष्ट होने लगती हैं।



वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से संचित पित्तदोष का शरद

ऋतु में प्रकोप हो जाता है। वायु का शमन होता है।

जठराग्नि मंद हो जाती है। परिणामस्वरूप रोग उत्पन्न

होते हैं।

आयुर्वद ने समस्त ऋतुओं में शरद ऋतु को रोगों

की माता कहा जाता है।


              ■शरद ऋतु में क्या खाये -



●पित्त के शमन के लिए मीठे,
कड़वे एवं कषाय रस का उपयोग विशेष रूप से करना
चाहिए।

●अनाज में गेहूँ,

● जौ,

●ज्वार,

●पुराना चावल,

●दालों में मूँग ,मसूर, मोठ,

●सब्जियों में कुम्हड़ा (पेठा), लौकी,करेले, परवल, तोरई,
गोभी, कंकोड़ा, पालक, चौलाई, गाजर, कच्ची ककड़ी ,मक्के का भुट्टा,

●फलों में अनार, पके केले,मोसम्बी, नींबू, नारियल,
ताजा अंजीर, पका पपीता, अंगूर, आँवला

●मसालों में जीरा, धनिया,, इलायची, हल्दी, खसखस,
सौंफ लिये जा सकते हैं।

इसके अलावा दूध, घी, मक्खन, मिश्री, नारियल का तेल तथा अरण्डी का तेल लेना बहुत लाभदायी है।

●तेल की जगह घी का उपयोग उत्तम है।

●शरद ऋतु में खीर,
रबड़ी आदि ठंडी करके खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।

●पके केले में घी और इलायची डालकर खाने से लाभ होता है।

●गन्ने का रस एवं नारियल का पानी खूब फायदेमंद हैं।

● काली द्राक्ष (मुनक्का),

●सौंफ एवं धनिया मिलाकर बनाया गया पेय गर्मी का शमन करता है।


                ■शरद ऋतु में क्या ना खायें



●इस ऋतु में पित्तदोष का प्रकोप करने वाली खट्टी व तीखी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।


●भरपेट भोजन,

●दिन की निद्रा,

●बर्फ,

●दही,

●खट्टी छाछ व तले हुए पदार्थों का सेवन न करें।

●बाजरा,

●उड़द,

●कुलथी,

●अरहर (तुअर) चौलाई,

●मिर्च,

●प्याज,

●लहसुन, .

●अदरक,

●पके हुए बैंगन,

●टमाटर,

●इमली,

●हींग, तिल,

●मूँगफली,

●सरसों आदि पित्तकारक होने से त्याज्य है।



                 ■शरद ऋतु में विहारः


इन दिनों में शीतल चाँदनी का लाभ लेने के लिए रात्रिजागरण, रात्रिभ्रमण करना चाहिए।

इसीलिए नवरात्रि वगैरह का आयोजन किया जाता है। रात्रिजागरण 12 बजे तक का ही माना जाता है।

अधिक जागरण से, सुबह एवं दोपहर को सोने से त्रिदोष प्रकुपित होते हैं जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता है।

हमारे दूरदर्शी ऋषि-मुनियों ने शरदपूनम जैसा त्यौहार भी इस ऋतु में विशेषकर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही आयोजित किया है।

शरदपूनम की रात को जागरण,
भ्रमण, मनोरंजन आदि को उत्तम पित्तनाशक विहार के रूप में आयुर्वेद ने स्वीकार किया है।

शरदपूनम की शीतल रात्रि में चंद्रमा की किरणों में छत पर रखी हुई दूध की खीर खाना चाहिए | और एकादशी से शरदपूनम तक चन्द्रमा पर त्राटक (एक तक देखना) करने से आखों की रौशनी बढती है ||

Comments

  1. Great post, Effective Neck pain treatment is crucial for restoring comfort and mobility. Seek professional guidance for personalized care and lasting relief from neck discomfort.

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