IRRITABLE BOWEL SYNDROME (IBS )
IRRITABLE BOWEL SYNDROME (IBS )
क्या आपको अचानक से कभी भी पेट में प्रेशर बनने लगता है और आपको पूरे दिन में चार-पांच बार फ्रेश होने के लिए वॉशरुम जाने पड़ता हैं। फिर तो आप IBS यानी Irritable Bowel Syndrome से पीड़ित हो सकते हैं, ये एक ऐसी समस्या है जिसमे बड़ी आंत प्रभावित होती है।
भागदौड़ भरी जीवनशैली ने लोगों को इतना व्यस्त कर दिया है कि वे अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं दे पाते। फास्ट फूड खाना, पूरी नींद न लेना और तनाव से भरी दिनचर्या के चलते लोग अनेक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इन्हीं में से एक बीमारी है इरिटेबल बाउल सिंड्रोम। यह पाचन तंत्र से जुड़ी समस्या है। बढ़िया सेहत के लिए अच्छी पाचन शक्ति जरूरी है। सुबह ठीक से पेट साफ होना स्वस्थ होने की सबसे बड़ी निशानी है, लेकिन जो लोग इस रोग से पीड़ित होते हैं, उनके साथ ऐसा नहीं होता।
क्या है IBS या Irritable Bowel Syndrome
IBS यानी इरिटेबल बाउल सिंड्रोम एक सामान्य डिसॉर्डर है, जो बड़ी आंत को प्रभावित करता है। इसमें आंत की तंत्रिकाएं और मांसपेशियां अति संवेदनशील हो जाती हैं। छोटी आंत की मांसपेशियां भोजन को बड़ी आंत में पहुंचाती हैं। सामान्यतया ये एक रिदम में सिकुड़ती और फैलती हैं, लेकिन कुछ लोगों में आंतों का यह संकुचन सामान्य से अधिक लंबा और अधिक मजबूत होता है। यह दर्दनाक होता है और भोजन के प्रवाह में भी रुकावट डालता है। अगर भोजन का प्रवाह बहुत धीमा होता है तो कब्ज हो जाता है। अगर यह बहुत तेज होता है तो आप डायरिया के शिकार हो सकते हैं।
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम क्यों होता है? (Causes of Irritable Bowel Syndrome)
अधिकतर रोगियों में तनाव के समय यह समस्या अधिक रहती है। जैसे नए जॉब के शुरुआती दिन, इंटरव्यू के पहले, कोई दूसरा तनाव का कारण जिसके लिए मरीज संवेदनशील है। व्यक्तित्व विकार, अवसाद, चिंता, यौन शोषण और घरेलू हिंसा का इतिहास आंत्र सिंड्रोम विकसित करने के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है। आँतों से सम्बंधित ये गतिविधियां मस्तिष्क द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। ये नियंत्रण भी सुचारू नहीं रह जाता। इसलिए इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम को मस्तिष्क-आंत विकार (ब्रेन-गटडिसऑर्डर) कहा जाता है।
रिस्क फैक्टर्स
इस रोग में मरीजों की आंत की बनावट में कोई बदलाव नही होता है, इसलिए कई बार इसे सिर्फ रोगी का वहम ही मान लिया जाता है। लेकिन आँतों की बनावट में कोई चेंज ना आने के बावजूद भी रोगी को कब्ज या बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द, गैस जैसी समस्याएं होती हैं। ये बीमारी अनुवांशिक नहीं है। ये अधिकतर उन्हें होती है जो अधिक स्ट्रेस या तनाव में जीते है, जिन्हें सही तरह से रात को नींद नहीं आती या किसी भी प्रकार के मानसिक बीमारी से पीड़ित है।
कई लोगों में आईबीएस के लक्षण कभी-कभी दिखाई देते हैं, लेकिन अगर आप युवा हैं तो आप में आईबीएस होने की आशंका बढ़ जाती है। आईबीएस अकसर 45 साल से कम उम्र के लोगों को होता है।
महिलाओं में अधिक
महिलाओं में यह समस्या पुरुषों की तुलना में दोगुनी होती है। अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों के परिवार के किसी सदस्य को आईबीएस होता है, उनमें इसका खतरा बढ़ जाता है।
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of Irritable Bowel Syndrome)
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग दिखायी देते हैं। आपको बता दें कि मल के साथ खून आना इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षण नहीं है। मल के साथ खून निकलना (Bleeding), लगातार दर्द होना और बुखार रहना हेमोरॉइड (hemorrhoids) और अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण हैं, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के लक्षण निम्न हैं-
●कब्ज या दस्त-इस बीमारी में व्यक्ति को दस्त या कब्ज की समस्या होती है जो कम या ज्यादा हो सकती है। कई बार दस्त सामान्य और कई बार रक्त के साथ होते हैं। हालांकि घरेलू उपचार की मदद से इससे आराम मिल जाता है लेकिन कुछ समय के बाद समस्या फिर से शुरू हो जाती है। यदि रोगी के मल में रक्त आना शुरू हो जाता है तो उसे एनीमिया भी हो सकता है।
●वजन कम होना-इस बीमारी में मरीज का वजन कम होना बेहद ही आम होता है। खासकर अगर बीमारी के दौरान दस्त की समस्या हो जाये तो उसके शरीर में पानी की कमी की समस्या भी पैदा हो जाती है।
●भूख में कमी–इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम की समस्या होने पर मरीज को भूख कम लगने लगती है और कभी-कभी तो उसका जी भी मिचलाने लगता है।
पेट में ऐंठन और दर्द-इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के रोगियों में पेट में दर्द या ऐंठन होना सबसे आम लक्षण होता है। हालांकि कभी-कभी यह इतना हल्का होता है कि मरीज को पता हीं नहीं लगता कि कइसका कारण क्या है और वह इसका उपचार सामान्य पेट दर्द समझ कर ही करता है।
●बुखार-कभी-कभी इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के मरीज को हल्का या तेज बुखार भी हो जाता है।
पेट में कब्ज होना। गंभीर रूप से डायरिया से पीड़ित होना। पेट के निचले हिस्से में दर्द और मरोड़ होना, भोजन करने के बाद पेट में मरोड़ और दर्द अधिक बढ़ जाना। पेट में अधिक गैस बनना और सूजन होना सामान्य से अधिक पतला या सूखा मल (hard stool) निकलना। पेट चिपक जाना। पेट में अलग-अलग तरह से मरोड़ और दर्द होना। मल में श्लेष्म (mucus) निकलना। इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम से पीड़ित कुछ लोगों को पेशाब या यौन संबंधी (Sexual issues) समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम की समस्या होने पर, इस तरह के लक्षण नजर आते हैं। भले ही इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम एक घातक बीमारी नहीं है लेकिन हो यदि इसे नजरअंदाज किया जाए तो इससे होने वाली अन्य समस्याएं रोगी के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। यह आंतों को खराब तो नहीं करता लेकिन खराब होने के संकेत देने लगता है। वहीं कुछ मरीजों में इन लक्षणें के अलावा, जी मिचलाना, मल में असामान्य तरल निकलना जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं।
इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम से बचने के उपाय और सावधानियां (Prevention or Precaution Tips for Irritable Bowel Syndrome)
इस रोग में पाचन शक्ति मंद रहती है, इसलिए जब आप कम खायेंगे तो पाचन तंत्र प्रभावी तरीके से काम कर पायेगा रोग ठीक होने तक भर पेट खाना न खाएं, भूख से अधिक भी कभी नही खाएं तीन रोटी की भूख है तो ढाई रोटी ही खायें।
एक समय के आहार में केवल एक अनाज और एक दाल या सब्जी ही लें। रोटी और चावल दोनों को इकट्ठे खाने की कोई आवश्यकता नहीं। एक आहार में या तो चावल खाईये या फिर केवल रोटी। जब आप ऐसा करेंगे तो पाचन तंत्र पर अधिक दबाव नहीं पड़ेगा। भांति-भांति के व्यंजन पचाने के लिये आपके तंत्र को भांति-भांति के एंजाइम बनाने पड़ते हैं और जब एंजाइम बनने में कमी रह जायेगी तो आपका भोजन भी सही से नहीं पचेगा। ब्याह-शादियों या अन्य दावतों में भी इस नियम का पालन करें। चुन लें कि आपको कौन-से एक अनाज और एक दाल सब्जी या अन्य व्यंजन लेना है।
●दही या मट्ठा (छाछ) का उपयोग-
इनका उपयोग भोजन के अंत में ही करें। पहले कभी नहीं। खाली पेट दही या मट्ठा का उपयोग करने से एसिडिटी और अफारा बढ़ जाया करते हैं क्योंकि हमारे आमाशय का तेजाब दही के लाभकारी बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है और खाली पेट लिया दही या मट्ठा केवल एसिडिक आहार बनकर आपके कष्ट को बढ़ा देता है। दही या मट्ठा में PBF मिला कर लेंगे तो लाभकारी बैक्टीरिया जल्दी बढ़ेगा और राहत भी जल्दी मिलेगी।
●मसाले मिर्च-
मसालों में जीरा, काली मिर्च, अदरक, धनियां, दालचीनी, सौंफ, मेथी, जावित्री, लोंग, जायफल, अजवायन इत्यादि सभी आपके लिए लाभकारी हैं। केवल लाल और हरी मिर्च से बचें या कम खाएं। लाल और हरी मिर्च को छोड़कर सभी प्रकार के मसाले आपके लिए लाभकारी हैं।
●कितनी बार खाना चाहिए-
रोग ठीक होने तक रोजाना केवल दो या तीन बार ही आहार लें। प्रातराश (Breakfast), दोपहर का भोजन (Lunch), और रात्रि का भोजन (Dinner), दो आहारों के बीच कम से कम चार घण्टे का अंतराल रखें।
●बार-बार के खाने से बचें-
दो आहारों के अंतराल में स्नैक्स जैसे बिस्कुट, नमकीन इत्यादि से भी बचे। खाने के समय का अनुशासन कड़ाई से पालें। यह नहीं होना चाहिए कि किसी दिन नाश्ता 8 बजे किया और कभी सुबह 10 बजे। खाने के दैनिक समय में 15 मिनट से आधे घण्टे से अधिक हेरफेर नहीं होना चाहिए।
●8 घण्टे में 2 बार भोजन 16 घंटे उपवास-
8 घंटे के भीतर दो भोजन करना और 16 घंटे का उपवास करने को 8/16 के नियम से जाना जाता है। जब आप दोपहर 12 से 1 बजे के बीच और रात को 8 से 9 बजे तक दो भरपेट भोजन लेते हैं और 16 घंटे के लिये अपने पाचन तंत्र को आराम देते हैं तो चमत्कारिक लाभ मिलते हैं। कोशिश कीजिये कि सप्ताह में कम से कम दो दिन आप इस नियम को जरूर पालें। आपको इन दो दिनों में केवल अपना सुबह का नाश्ता नहीं लेना है, केवल दोपहर और रात के भोजन ही लेने हैं। सुबह से दोपहर तक जब भी आपको भूख का आभास हो तो पानी या नीम्बू पानी पी लिया करें, यह पेट के तंत्र को मजबूत भी करेगा और आराम भी देगा। लेकिन यह नियम तभी पालें जब आपको केवल IBS की शिकायत हो। यदि इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम के साथ एसिड सम्बन्धी कोई रोग हों जैसे कि गैस्ट्रिटाइटिस, जर्ड (GERD), पेप्टिक अल्सर, एसिडिटी इत्यादि; तो आपको तीन या चार बार हल्के सुपाच्य आहार लेने चाहिए। आंत्रशोथ (Ulcerative colitis) में भी तीन या चार हल्के आहार लेना लाभकारी रहता है। इस 16 घंटे की उपवास अवधि में पानी, बिना दूध की चाय या नीम्बू पानी ले सकते हैं।
●एक आहारीय उपवास-
अगर संभव हुआ तो उपचार अवधि में कभी कभार दिन भर में केवल एक भोजन ही लें, रात के समय। इसे एक आहारीय उपवास कहा जाता है। इसे आप माह में एक दिन भी करेंगे तो लाभ मिलेगा, बिना अनाज का आहार आजकल के अनाज, विशेषकर गेहूँ भी कुछ एक के पाचन में बाधा पहुंचती है। क्या आपको अनाज सही से हजम हो जाते है; इसे जानने का आसान उपाय है, लगातार तीन से पाँच दिन तक केवल दाल, सब्जी और दही का ही सेवन करें, यदि आपको लाभ अनुभव हो तो पेट के पूरी तरह ठीक होने तक अनाज का उपयोग बंद कर दें। आपको बहुत जल्द लाभ मिलेगा। यदि आपको अनाज तंग न भी करते हैं तो भी सप्ताह में एक या दो दिन केवल सब्जियां, दाल और फल का ही सेवन करना चाहिए।
●आराम से भोजन करें-
भोजन को हमेशा धीरे-धीरे खाएं; जल्दबाजी कभी न करें, मुँह की लार में सैलवरी एमलेज़ (salivary) नामक एंजाइम होता है जो कष्टकारी स्टार्च को मैलटोस में बदल देता है। मन लगा कर, ध्यानपूर्वक, पूरे आराम से भोजन करने की आदत डालिये। भोजन के हर कौर को आनंद पूर्वक इतना चबाइये कि ये निगलने की बजाय पानी की तरह गटकने योग्य हो जाये।
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